कथा कीर्तन कुल विशे, भव सागर की नाव (अर्थ)
कथा कीर्तन कुल विशे, भव सागर की नाव । क़हत कबीरा या जगत, नाहीं और उपाय ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि संसार रूपी भवसागर से पार उतरने के…
कथा कीर्तन कुल विशे, भव सागर की नाव । क़हत कबीरा या जगत, नाहीं और उपाय ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि संसार रूपी भवसागर से पार उतरने के…
कबिरा आप ठगाइए, और न ठगिए कोय । आप ठगे सुख होत है, और ठगे दुख होय ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि स्वयम को ठगना उचित है ।…
कबिरा ते नर अन्ध हैं, गुरु को कहते और । हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि वे नर अन्धे हैं…
कबिरा जपना काठ की, क्या दिखलावे मोय । हिरदय नाम न जपेगा, यह जपनी क्या होय ।। अर्थ: कबीर जी कहते हैं कि इस लकड़ी की माला से क्या होता…
कबीर यह जग कुछ नहीं, खिन खारा खिन मीठ । काल्ह जो बैठा भंडपै, आज भसाने दीठ ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि यह संसार नाशवान है क्षण भर…
कबीर सीप समुद्र की, रटे पियास पियास । और बूँदी को ना गहे, स्वाति बूँद की आस ।। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि प्रत्येक प्राणी को ऐसी वस्तु…
कबिरा मनहि गयंद है, आंकुश दै-दै राखि । विष की बेली परि हरै, अमृत को फल चाखि ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि मन हाथी के समान है उसे…
कबीरा सोई पीर है, जो जा नै पर पीर । जो पर पीर न जानइ, सो काफिर के पीर ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि वही सच्चा पीर (साधु)…
कागा काको धन हरे, कोयल काको देय । मीठे शब्द सुनाय के, जग अपनो कर लेय ।। अर्थ: कागा किसका धन हरता है जिससे संसार उससे नाराज रहता है और…
कबीर सोता क्या करे, जागो जपो मुरार । एक दिना है सोवना, लांबे पाँव पसार ।। अर्थ: कबीर अपने को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे कबीर! तू सोने…