काया काढ़ा काल धुन, जतन-जतन सो खाय (अर्थ)
काया काढ़ा काल धुन, जतन-जतन सो खाय । काया ब्रह्म ईश बस, मर्म न काहूँ पाय ।। अर्थ: काष्ठ रूपी काया को काल रूपी धुन भिन्न-भिन्न प्रकार से खा रहा…
काया काढ़ा काल धुन, जतन-जतन सो खाय । काया ब्रह्म ईश बस, मर्म न काहूँ पाय ।। अर्थ: काष्ठ रूपी काया को काल रूपी धुन भिन्न-भिन्न प्रकार से खा रहा…
काल करे सो आज कर, आज करै सो अब । पल में परलय जोयागी, बहुर करैगा कब ।। अर्थ: जो कार्य, हे प्राणी कल करने का विचार है उसको अभी…
काह भरोसा देह का, बिनस जात छिन मारहिं । साँस-साँस सुमिरन करो, और यतन कछु नाहिं ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि इस पंच तत्व शरीर का क्या भरोसा…
कबीरा धीरज के धरे, हाथी मन भर खाय । टूट-टूट के कारनै, स्वान धरे धर जाय ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि कि गज के धैर्य धारण करने से…
कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान । जम जब घर ले जाएँगे, पड़ा रहेगा म्यान ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि हे जीव सोकर क्या करेगा उठकर…
कबीरा लहर समुद्र की, निष्फल कभी न जाय । बगुला परख न जानई, हंसा चुग-चुग खे ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि समुद्र की लहर भी निष्फल नहीं आती…
को छुटौ इहिं जाल परि, कत फुरंग अकुलाय । ज्यों-ज्यों सुरझि भजौ चहै, त्यों-त्यों उरझत जाय ।। अर्थ: इस संसार बंधन से कोई नहीं छूट सकता । पक्षी जैसे-जैसे सुलझ…
कबीरा संगत साधु की, निष्फल कभी न होय । होमी चन्दन बासना, नीम न कहसी कोय ।। अर्थ: साधु की संगति कभी निष्फल नहीं जाती है, चन्दन के हवन से…
कबीरा संगति साधु की, जित प्रीत किजै जाय । दुर्गति दूर वहावती, देवी सुमति बनाय ।। अर्थ: कबीर जी कहते हैं कि साधु की संगति नित्य ही करनी चाहिए ।…
कबीरा कलह अरु कल्पना,सतसंगति से जाय । दुख बासे भागा फिरै, सुख में रहै समाय ।। अर्थ: संतों की संगति में रहने से मन से कलह एवं कल्पनादिक आधि-व्याधियाँ नष्ट…