कबीर सोता क्या करे, जागो जपो मुरार (अर्थ)
कबीर सोता क्या करे, जागो जपो मुरार । एक दिना है सोवना, लांबे पाँव पसार ।। अर्थ: कबीर अपने को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे कबीर! तू सोने…
कस्तूरी कुंडल बसै, मृग ढूंढे बन माहिं (अर्थ)
कस्तूरी कुंडल बसै, मृग ढूंढे बन माहिं । ऐसे घट-घट राम है, दुनिया देखे नाहिं ।। अर्थ: भगवान प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में विद्यमान है परंतु सांसारिक प्राणी उसे देख…
करता था सो क्यों किया, अब कर क्यों पछिताय (अर्थ)
करता था सो क्यों किया, अब कर क्यों पछिताय । बोया पेड़ बाबुल का, आम कहाँ से खाय ।। अर्थ: कार्य को विचार कर करना चाहिए, जिस प्रकार बबूल का…
कहे कबीर देय तू, जब तक तेरी देह (अर्थ)
कहे कबीर देय तू, जब तक तेरी देह । देह खेह हो जाएगी, कौन कहेगा देह ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि जब तक तू जीवित है तब तक…
कबीरा लोहा एक है, गढ़ने में है फेर (अर्थ)
कबीरा लोहा एक है, गढ़ने में है फेर । ताही का बखतर बने, ताही की शमशेर ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि एक ही धातु लोहे को अनेक रूपों…
कबीर मन पंछी भया,भये ते बाहर जाय (अर्थ)
कबीर मन पंछी भया,भये ते बाहर जाय । जो जैसे संगति करै, सो तैसा फल पाय ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि मेरा मन एक पक्षी के समान है,…
कहता तो बहूँना मिले, गहना मिला न कोय (अर्थ)
कहता तो बहूँना मिले, गहना मिला न कोय । सो कहता वह जाने दे, जो नहीं गहना कोय ।। अर्थ: कबीर जी कहते हैं कि इस संसार में आत्मज्ञान के…
कुटिल बचन सबसे बुरा,जासे होत न हार (अर्थ)
कुटिल बचन सबसे बुरा,जासे होत न हार । साधु बचन जल रूप है, बरसे अमृत धार ।। अर्थ: कठोर वचन सबसे बुरी वस्तु है, यह मनुष्य के शरीर को जलाकर…
कहा कियो हम आय कर, कहा करेंगे पाय (अर्थ)
कहा कियो हम आय कर, कहा करेंगे पाय । इनके भये न उतके, चाले मूल गवाय ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि जीव के पैदा होने का कोई कारण…
काया काढ़ा काल धुन, जतन-जतन सो खाय (अर्थ)
काया काढ़ा काल धुन, जतन-जतन सो खाय । काया ब्रह्म ईश बस, मर्म न काहूँ पाय ।। अर्थ: काष्ठ रूपी काया को काल रूपी धुन भिन्न-भिन्न प्रकार से खा रहा…