काह भरोसा देह का, बिनस जात छिन मारहिं (अर्थ)

काह भरोसा देह का, बिनस जात छिन मारहिं । साँस-साँस सुमिरन करो, और यतन कछु नाहिं ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि इस पंच तत्व शरीर का क्या भरोसा…

को छुटौ इहिं जाल परि, कत फुरंग अकुलाय (अर्थ)

को छुटौ इहिं जाल परि, कत फुरंग अकुलाय । ज्यों-ज्यों सुरझि भजौ चहै, त्यों-त्यों उरझत जाय ।। अर्थ: इस संसार बंधन से कोई नहीं छूट सकता । पक्षी जैसे-जैसे सुलझ…

कबीरा संगति साधु की, जित प्रीत किजै जाय (अर्थ)

कबीरा संगति साधु की, जित प्रीत किजै जाय । दुर्गति दूर वहावती, देवी सुमति बनाय ।। अर्थ: कबीर जी कहते हैं कि साधु की संगति नित्य ही करनी चाहिए ।…

कबीरा कलह अरु कल्पना,सतसंगति से जाय (अर्थ)

कबीरा कलह अरु कल्पना,सतसंगति से जाय । दुख बासे भागा फिरै, सुख में रहै समाय ।। अर्थ: संतों की संगति में रहने से मन से कलह एवं कल्पनादिक आधि-व्याधियाँ नष्ट…