उज्ज्वल पहरे कापड़ा, पान-सुपारी खाय (अर्थ)
उज्ज्वल पहरे कापड़ा, पान-सुपारी खाय । एक हरि के नाम बिन, बाँधा यमपुर जाय ।। अर्थ: उजले कपड़े पहनता है और पाण-सुपारी खाकर अपने तन को मैला नहीं होने देता।…
आया था किस काम को, तू सोया चादर तान (अर्थ)
आया था किस काम को, तू सोया चादर तान । सूरत संभाल ए काफिला, अपना आप पहचान ।। अर्थ: कबीर जी कहते हैं कि प्राणी तू यहाँ मनुष्य योनि में…
आशा को ईंधन करो, मनशर करा न भूत (अर्थ)
आशा को ईंधन करो, मनशर करा न भूत । जोगी फेरी यों फिरो, तब बुन आवे सूत ।। अर्थ: कबीर जी कहते हैं कि सच्चा योगी बनना है तो मोह…
आग जो लागी समुद्र में, धुआँ न प्रगटित होय (arth)
आग जो लागी समुद्र में, धुआँ न प्रगटित होय । सो जाने जो जरमुआ, जाकी लाई होय ।। अर्थ: कबीर जी कहते हैं कि आग प्रायः धुआँ से जानी जाती…
आए हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर (अर्थ)
आए हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर । एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बाँधि जंजीर ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि जो प्राणी इस संसार में जन्म ग्रहण करेगा…
आहार करे मनभावता, इंद्री की स्वाद (अर्थ)
आहार करे मनभावता, इंद्री की स्वाद । नाक तलक पूरन भरे, तो कहिए कौन प्रसाद ।। अर्थ: जो मनुष्य इंद्रियों के स्वाद के लिए पूर्ण नाक तक भरकर खाय तो…
आवत गारी एक है, उलटन होय अनेक (अर्थ)
आवत गारी एक है, उलटन होय अनेक । कह कबीर नहिं उलटिये, वही एक की एक ।। अर्थ: गाली आते हुए एक होती है परंतु उलटने पर बहुत हो जाती…
आस पराई राखता, खाया घर का खेत (अर्थ)
आस पराई राखता, खाया घर का खेत । औरन को पथ बोधता, मुख में डारे रेत ।। अर्थ: तू दूसरों की रखवाली करता है अपनी नहीं यानि तू दूसरों को…
अपने-अपने साख की, सब ही लिनी भान (अर्थ)
अपने-अपने साख की, सब ही लिनी भान । हरि की बात दुरन्तरा, पूरी ना कहूँ जान ।। अर्थ: हरि का भेद पाना बहुत कठिन है पूर्णतया कोई भी न पा…
अन्तरयामी एक तुम, आतम के आधार | कबीर के दोहे
अन्तरयामी एक तुम, आतम के आधार । जो तुम छोड़ो हाथ तौ, कौन उतारे पार ।। अर्थ: हे प्रभु ! आप हृदय के भावों को जानने वाले तथा आत्मा के…