अटकी भाल शरीर में, तीर रहा है टूट | कबीर के दोहे
अटकी भाल शरीर में, तीर रहा है टूट । चुंबक बिना निकले नहीं, कोटि पठन को फूट ।। अर्थ: जैसे कि शरीर में वीर की भाल अटक जाती है और…
संत कबीर दास के दोहे pdf (2023) | कबीर के दोहे pdf
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संत कबीर दास के सम्पूर्ण दोहे (2023) | kabir ke dohe
अटकी भाल शरीर में, तीर रहा है टूट । चुंबक बिना निकले नहीं, कोटि पठन को फूट
प्रेम पर कबीर के दोहे | prem par kabir ke dohe
प्रेम पर कबीर के दोहे आगि आंचि सहना सुगम, सुगम खडग की धार नेह निबाहन ऐक रास, महा कठिन ब्यबहार। अर्थ- अग्नि का ताप और तलवार की धार सहना आसान…