कबीर मन पंछी भया,भये ते बाहर जाय (अर्थ)
कबीर मन पंछी भया,भये ते बाहर जाय । जो जैसे संगति करै, सो तैसा फल पाय ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि मेरा मन एक पक्षी के समान है,…
कहता तो बहूँना मिले, गहना मिला न कोय (अर्थ)
कहता तो बहूँना मिले, गहना मिला न कोय । सो कहता वह जाने दे, जो नहीं गहना कोय ।। अर्थ: कबीर जी कहते हैं कि इस संसार में आत्मज्ञान के…
कुटिल बचन सबसे बुरा,जासे होत न हार (अर्थ)
कुटिल बचन सबसे बुरा,जासे होत न हार । साधु बचन जल रूप है, बरसे अमृत धार ।। अर्थ: कठोर वचन सबसे बुरी वस्तु है, यह मनुष्य के शरीर को जलाकर…
कहा कियो हम आय कर, कहा करेंगे पाय (अर्थ)
कहा कियो हम आय कर, कहा करेंगे पाय । इनके भये न उतके, चाले मूल गवाय ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि जीव के पैदा होने का कोई कारण…
काया काढ़ा काल धुन, जतन-जतन सो खाय (अर्थ)
काया काढ़ा काल धुन, जतन-जतन सो खाय । काया ब्रह्म ईश बस, मर्म न काहूँ पाय ।। अर्थ: काष्ठ रूपी काया को काल रूपी धुन भिन्न-भिन्न प्रकार से खा रहा…
काल करे सो आज कर, आज करै सो अब (अर्थ)
काल करे सो आज कर, आज करै सो अब । पल में परलय जोयागी, बहुर करैगा कब ।। अर्थ: जो कार्य, हे प्राणी कल करने का विचार है उसको अभी…
काह भरोसा देह का, बिनस जात छिन मारहिं (अर्थ)
काह भरोसा देह का, बिनस जात छिन मारहिं । साँस-साँस सुमिरन करो, और यतन कछु नाहिं ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि इस पंच तत्व शरीर का क्या भरोसा…
कबीरा धीरज के धरे, हाथी मन भर खाय (अर्थ)
कबीरा धीरज के धरे, हाथी मन भर खाय । टूट-टूट के कारनै, स्वान धरे धर जाय ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि कि गज के धैर्य धारण करने से…
कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान (अर्थ)
कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान । जम जब घर ले जाएँगे, पड़ा रहेगा म्यान ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि हे जीव सोकर क्या करेगा उठकर…
कबीरा लहर समुद्र की, निष्फल कभी न जाय (अर्थ)
कबीरा लहर समुद्र की, निष्फल कभी न जाय । बगुला परख न जानई, हंसा चुग-चुग खे ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि समुद्र की लहर भी निष्फल नहीं आती…