तन बोहत मन काग है, लक्ष योजन उड़ जाय (अर्थ)
तन बोहत मन काग है, लक्ष योजन उड़ जाय । कबहुँ के धर्म अगमदयी, कबहुँ गगन समाय ।। अर्थ: मनुष्य का शरीर विमान के समान है और मन काग के…
तब लग तारा जगमगे, जब लग उगे नसूर (अर्थ)
तब लग तारा जगमगे, जब लग उगे नसूर । तब लग जीव कर्मवश, जब लग ज्ञान ना पूर ।। अर्थ: जब तक सूर्य उदय नहीं होता तब तक तारा चमकता…
दिल का मरहम कोई न मिला, जो मिला सो गर्जी (अर्थ)
दिल का मरहम कोई न मिला, जो मिला सो गर्जी । कहे कबीर बादल फटा, क्यों कर सीवे दर्जी ।। अर्थ: इस संसार में ऐसा कोई नहीं मिला, जो कि…
तन को जोगी सब करे, मन को बिरला कोय (अर्थ)
तन को जोगी सब करे, मन को बिरला कोय । सहजै सब बिधिपाइये, जो मन जोगी होय ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि शरीर से तो सभी योगी हो…
तीर तुपक से जो लड़ै, सो तो शूर न होय (अर्थ)
तीर तुपक से जो लड़ै, सो तो शूर न होय । माया तजि भक्ति करे, सूर कहावै सोय ।। अर्थ: वह मानव वीर नहीं कहलाता जो केवल धनुष और तलवार…
तेरा साईं तुझ में, ज्यों पहुन में बास (अर्थ)
तेरा साईं तुझ में, ज्यों पहुन में बास । कस्तूरी का हिरण ज्यों, फिर-फिर ढूँढ़त घास ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य तेरा स्वामी भगवान तेरे ही अंदर…
ते दिन गये अकारथी, संगत भई न संत (अर्थ)
ते दिन गये अकारथी, संगत भई न संत । प्रेम बिना पशु जीवना, भक्ति बिना भगवंत ।। अर्थ: जितना जीवन का समय सत्संग के बिना किए व्यतीत ही गया उसको…
तिनका कबहुँ न निंदिये, जो पाँव तले भी होय (अर्थ)
तिनका कबहुँ न निंदिये, जो पाँव तले भी होय । कबहुँ उड़ आँखों पड़े, पीर घनेरी होय ।। अर्थ: तिनके का भी अनादर नहीं करना चाहिए । चाहे वह हमारे…
तीरथ गए से एक फल, सन्त मिलै फल चार (अर्थ)
तीरथ गए से एक फल, सन्त मिलै फल चार । सतगुरु मिले अधिक फल, कहै कबीर बिचार ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि यदि जीव तीर्थ करता है तो…
जो जन भीगे राम रस, विगत कबहूँ ना रुख (अर्थ)
जो जन भीगे राम रस, विगत कबहूँ ना रुख । अनुभव भाव न दरसे, वे नर दुःख ना सुख ।। अर्थ: जिस तरह सूखा पेड़ नहीं फलता इसी तरह राम…