गारी ही सो ऊपजे, कलह कष्ट और भींच (अर्थ)
गारी ही सो ऊपजे, कलह कष्ट और भींच । हारि चले सो साधु हैं, लागि चले सो नीच ।। अर्थ: गाली से ही कलह और दुःख तथा मृत्यु पैदा होती…
गारी ही सो ऊपजे, कलह कष्ट और भींच । हारि चले सो साधु हैं, लागि चले सो नीच ।। अर्थ: गाली से ही कलह और दुःख तथा मृत्यु पैदा होती…
घी के तो दर्शन भले, खाना भला न तेल । दाना तो दुश्मन भला, मूरख का क्या मेल ।। अर्थ: तेल खाने से घी के दर्शन करना ही उत्तम है…
घाट का परदा खोलकर, सन्मुख ले दीदार । बाल सनेही साइयां, आवा अंत का यार ।। अर्थ: जो भगवान के शैशव अवस्था का सखा और आदि से समाप्ती तक का…
चन्दन जैसा साधु है, सर्पहि सम संसार । वाके अङ्ग लपटा रहे, मन मे नाहिं विकार ।। अर्थ: साधु चन्दन के समान है और सांसारिक विषय वासना सर्प की तरह…
खेत ना छोड़े सूरमा, जूझे को दल माँह । आशा जीवन मरण की, मन में राखे नाँह ।। अर्थ: जो बलवान है वह दो सेनाओं के बीच भी लड़ता रहेगा…
गाँठि न थामहिं बाँध ही, नहिं नारी सो नेह । कह कबीर वा साधु की, हम चरनन की खेह ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि जो साधु पुरुष धन…
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाँय । बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय ।। अर्थ: गुरु और गोविंद मेरे सन्मुख दोनों खड़े हैं हुए हैं अब मैं किनके पैरों…
गर्भ योगेश्वर गुरु बिना, लागा हर का सेव । कहे कबीर बैकुंठ से, फेर दिया शुकदेव ।। अर्थ: यदि किसी ने अपना गुरु नहीं बनाया और जन्म से ही हरि…
कांचे भाड़े से रहे, ज्यों कुम्हार का नेह । अवसर बोवे उपजे नहीं, जो नहिं बरसे मेह ।। अर्थ: जिस तरह कुम्हार बहुत ध्यान व प्रेम से कच्चे बर्तन को…
केतन दिन ऐसे गए, अन रुचे का नेह । अवसर बोवे उपजे नहीं, जो नहिं बरसे मेह ।। अर्थ: बिना प्रेम की भक्ति के वर्ष बीत गया तो ऐसी भक्ति…