कली खोटा सजग आंधरा, शब्द न माने कोय (अर्थ)
कली खोटा सजग आंधरा, शब्द न माने कोय । चाहे कहूँ सत आइना, सो जग बैरी होय । अर्थ: यह कलयुग खोटा है और सारा जग अंधा है मेरी बात…
कली खोटा सजग आंधरा, शब्द न माने कोय । चाहे कहूँ सत आइना, सो जग बैरी होय । अर्थ: यह कलयुग खोटा है और सारा जग अंधा है मेरी बात…
कबिरा यह तन जात है, सके तो ठौर लगा । कै सेवा कर साधु की, कै गोविंद गुनगा ।। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं, यह जीवन (शरीर) दिन प्रति…
कथा कीर्तन कुल विशे, भव सागर की नाव । क़हत कबीरा या जगत, नाहीं और उपाय ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि संसार रूपी भवसागर से पार उतरने के…
कबिरा आप ठगाइए, और न ठगिए कोय । आप ठगे सुख होत है, और ठगे दुख होय ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि स्वयम को ठगना उचित है ।…
कबिरा ते नर अन्ध हैं, गुरु को कहते और । हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि वे नर अन्धे हैं…
कबिरा जपना काठ की, क्या दिखलावे मोय । हिरदय नाम न जपेगा, यह जपनी क्या होय ।। अर्थ: कबीर जी कहते हैं कि इस लकड़ी की माला से क्या होता…
कबीर यह जग कुछ नहीं, खिन खारा खिन मीठ । काल्ह जो बैठा भंडपै, आज भसाने दीठ ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि यह संसार नाशवान है क्षण भर…
कबीर सीप समुद्र की, रटे पियास पियास । और बूँदी को ना गहे, स्वाति बूँद की आस ।। अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि प्रत्येक प्राणी को ऐसी वस्तु…
कबिरा मनहि गयंद है, आंकुश दै-दै राखि । विष की बेली परि हरै, अमृत को फल चाखि ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि मन हाथी के समान है उसे…
कबीरा सोई पीर है, जो जा नै पर पीर । जो पर पीर न जानइ, सो काफिर के पीर ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि वही सच्चा पीर (साधु)…