जो जन भीगे राम रस, विगत कबहूँ ना रुख (अर्थ)
जो जन भीगे राम रस, विगत कबहूँ ना रुख । अनुभव भाव न दरसे, वे नर दुःख ना सुख ।। अर्थ: जिस तरह सूखा पेड़ नहीं फलता इसी तरह राम…
जो जन भीगे राम रस, विगत कबहूँ ना रुख । अनुभव भाव न दरसे, वे नर दुःख ना सुख ।। अर्थ: जिस तरह सूखा पेड़ नहीं फलता इसी तरह राम…
जो जाने जीव आपना, करहीं जीव का सार । जीवा ऐसा पाहौना, मिले न दूजी बार ।। अर्थ: यदि तुम समझते हो कि यह जीव हमारा है तो उसे राम-नाम…
जो तू चाहे मुक्ति को, छोड़ दे सबकी आस । मुक्त ही जैसा हो रहे, सब कुछ तेरे पास ।। अर्थ: परमात्मा का कहना है अगर तू मुक्ति चाहता है…
झूठे सुख को सुख कहै, मानता है मन मोद । जगत चबेना काल का, कुछ मुख में कुछ गोद ।। अर्थ: झूठे सुख को सुख माना करते हैं तथा अपने…
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय । यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय ।। अर्थ: यदि तुम्हारे मन में शांति है तो संसार में…
जाके जिभ्या बन्धन नहीं हृदय में नाहिं साँच । वाके संग न लागिये, खाले वटिया काँच ।। अर्थ: जिसको अपनी जीभ पर नियंत्रण नहीं और मन में सच्चाई नहीं तो…
जहाँ ग्राहक तंह मैं नहीं, जंह मैं गाहक नाय । बिको न यक भरमत फिरे, पकड़ी शब्द की छाँय ।। अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि जिस स्थान पर ग्राहक…
जहर की जमी में है रोपा, अभी सींचें सौ बार । कबिरा खलक न तजे, जामे कौन विचार ।। अर्थ: हे कबीर! संसार में जिसने जो कुछ सोच-विचार रखा है…
जल में बर्से कमोदनी, चन्दा बसै अकास । जो है जाको भावना, सो ताही के पास ।। अर्थ: जो आदमी जिसके प्रिय होता है वह उसके पास रहता है, जिस…
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहिं । सब अंधिरा मिट गया, दीपक देखा माहिं ।। अर्थ: जब मैं अविद्या वश अपने स्वरूप को नहीं पहचानता…